Tuesday, February 21, 2017

नाहक ना तितली को बागों से उड़ाया जाय

उस दौर में जब संस्कृति का संक्रमण गम्भीर मुद्दा है। पाश्चात्य और प्राचीन के बीच रस्साकशी का दौर जारी है। जब "सन्त वेलेंटाइन" और प्रेम के मूर्त रूप "दशरथ माँझी" के तौर-तरीको और उपलब्धियों पर चर्चा होती है। जब युवायों की नयी फसल, संस्कृति के रक्षको से निरन्तर संघर्षरत है । संस्कृतियों के संक्रमण में प्रेम सबसे चर्चित विषय है। ऐसे में इस विषय पर बात भी जरूरी हो चलती है। ऐसा ही एक सफल प्रयास  18 FEB -17  "परिवर्तन साहित्यिक मँच" के तत्वाधान में हुआ।  जहाँ पर प्रेम के विविध रंगों, आयामों और विधायों को उकेरती, चिन्तन करती , उनके सामाजिक प्रभाव और सरोकारों की बात करने वाली रचनाये प्रस्तुत की गयी। जहाँ से समाज को "मुहब्बत की तासीर मुहब्बत" ही होने का सन्देश दिया गया। जहाँ साहित्य की दुनिया के वरिष्ठ हस्ताक्षर थे और नवोदित भी। जहाँ सुरमयी शाम थी और ज्ञान गंगा भी। जहाँ सामाजिक सरोकार भी थे और गम्भीर चिंतन भी।

मुहब्बत की चाशनी में रिश्तों को पकाया जाय
नाहक ना तितली को बागों से उड़ाया जाय
मुहब्बत में मायनों को फिर से जगाया जाय ........

@विक्रम

Monday, February 20, 2017

परिवर्तन साहित्यिक मँच काव्य गोष्ठी 18 Feb, 2017,

काव्य गोष्ठी रेलवे क्लब नयी दिल्ली, 18 Feb, 2017, 
विषय: प्रेमगीत, विमोचन: साझा संकलन "मशाल" प्रकाशक: साहित्य संचय, सम्पादक: तेज प्रताप नारायण, फोटोग्राफी: ओमेंद्र सचान